हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , क़ुम अल-मुक़द्देसा में स्थित मदरसा एल्मिया 'अमरुल्लाही' में हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफ़ी ने छात्रो और शिक्षकों को संबोधित करते हुए कहा कि हौज़ा हाए इल्मिया लगातार एक हज़ार साल की वैज्ञानिक और बौद्धिक इतिहास रखते हैं, जिन्होंने हर युग में समाज, राजनीति और सभ्यता में प्रभावशाली भूमिका निभाई है।
उन्होंने इमाम ख़ुमैनी र.ह. शहीद उलेमा और मदरसा अमरुल्लाही के संस्थापक की सेवाओं को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि हौज़ा इल्मिया के चार हज़ार से अधिक उलेमा शहीद हुए हैं और यह एक वास्तविक पूंजी है जिसकी याद हमेशा जीवित रहनी चाहिए।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने कहा कि क़ुम में इस समय सात सौ से अधिक दर्स-ए-ख़ारिज आयोजित हो रहे हैं और यह वैज्ञानिक परिपक्वता हौज़ा की बौद्धिक ऊर्जा का प्रतीक है उनके अनुसार, हौज़ा की तीन बुनियादें हैं वैज्ञानिक प्रभुत्व, आध्यात्मिकता और नैतिकता, और सामाजिक व राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय भूमिका। यदि इरफ़ान और अर्थपूर्णता की भावना समाप्त हो जाए, तो हौज़ा का अस्तित्व नहीं रहता।
उन्होंने क्रांति के नेता के उस संदेश का हवाला देते हुए कहा कि तालिबे इल्म के लिए ऐतिहासिक दृष्टिकोण आवश्यक है। जो अपने अतीत को नहीं जानता, वह वर्तमान का विश्लेषण और भविष्य का रास्ता निर्धारित नहीं कर सकता। इस्लाम, ईरान, क्रांति और हौज़ा का इतिहास हर तालिबे इल्म के पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए।
आयतुल्लाह आराफ़ी ने आगे कहा कि हौज़ा ए इल्मिया एक जीवित, स्थायी और वैज्ञानिक केंद्र है जिसने हमेशा अत्याचार और दमन के विरुद्ध धार्मिक विचार को सुरक्षित रखा है। रज़ा शाह के समय में मरहूम आयतुल्लाह हाएरी यज़्दी ने इसी स्थायित्व का उदाहरण पेश किया, और आज भी यही भावना तालिबे इल्म में बनी रहनी चाहिए।
उन्होंने बताया कि प्रचार के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है तरह अमीन' के प्रचारकों की संख्या बीस हज़ार तक पहुँच गई है। अंत में उन्होंने कहा कि तालिबे इल्म ईमान और दृढ़ता के साथ ज्ञान और अर्थपूर्णता के मार्ग पर चलते रहें, क्योंकि उम्मत का इल्मी और सांस्कृतिक अस्तित्व हौज़ा इल्मिया के हाथों में ही संभव है।
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